Sunday, May 3, 2009

एक खुशी का मौका ऐसा भी

वादा था
एक
पार्टी का,
बस छोटी सी ।
वो दिन
एक दिन आ ही गया
सोचा हंगामा होगा
झूम झूम के झूमेंगे ।

ठीक छ बजे समय दिया ,
उसने हमें
हम झूमे
हँसे भी
अपने खर्चे पर
उस शाम रात के दस बजे तक ,
उसके बिना ।

2 comments:

Vinay said...

ख़ूबसूरत ब्लॉग पर ख़ूबसूरत रचना

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तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शाम

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

वाह मजे लूटने का ये रूप सबसे बेहतरीन है...........