सुरैया के बारे में मैं भी उतना ही जानता था जितना और सभी लोग , लोगों का मतलब रेडियो सुनने वाले हैं। सुरैया की आवाज़ को और शायद ही कोई अन्य माध्यम से देखने सुनने वाला जानता हो । संगीत कभी ख़त्म नही होता। सच है। मुझे कल पता लगा की सुरैया कुछ साल पहले ही मर चुकी है ।
उनकी जीवन यात्रा संक्षिप्त में इस तरह है :
इकलौती थीं , बेटी थीं ,दुलारी भी रही होंगी । फिल्मो में काम किया, सोचिये उस समय कितना कठिन काम रहा होगा। बला की ख़ूबसूरत थीं । एक साथ में काम करने वाले हीरो से प्यार कर बैठीं । वो हीरो देवानंद थे। काफी अरसे तक मोहब्बत ने इंतजार किया । पर इकलौती बिटिया ने एक आखरी दिवार नही लांघी। मोहब्बत का दामन सुरैया ने नही छोड़ा । उन्होंने कभी शादी नही की। २००४ में वो नही रहीं । कैसा कठिन फ़ैसला रहा होगा यूँ अकेले रहना। आप सोचिये हजारों शामे, सुबहें और रातें ।
मैंने उस पल के बारे में सोचा जब उन्होंने दो दो वफायें निभायीं माँ ,बाप से और देव साहब से ,
देव साहब तो कुवांरे न रहे और माँ बाप ने भी जन्नत का रास्ता चुना............. दोखज़ से डरते थे ,पर बिटिया के दर्द से नही ,
सुरैया जी आपसे कभी मिलूंगा तो मैं आपसे पूछूंगा की की ये मोहब्बत थी किसकी ? सिर्फ़ आपकी?
ये मोहब्बत थी ?
ये तो खामोशी थी
एक कमज़ोर की
एक औरत की।
Tuesday, June 16, 2009
Sunday, May 3, 2009
एक खुशी का मौका ऐसा भी
वादा था
एक
पार्टी का,
बस छोटी सी ।
वो दिन
एक दिन आ ही गया
सोचा हंगामा होगा
झूम झूम के झूमेंगे ।
ठीक छ बजे समय दिया ,
उसने हमें
हम झूमे
हँसे भी
अपने खर्चे पर
उस शाम रात के दस बजे तक ,
उसके बिना ।
एक
पार्टी का,
बस छोटी सी ।
वो दिन
एक दिन आ ही गया
सोचा हंगामा होगा
झूम झूम के झूमेंगे ।
ठीक छ बजे समय दिया ,
उसने हमें
हम झूमे
हँसे भी
अपने खर्चे पर
उस शाम रात के दस बजे तक ,
उसके बिना ।
Thursday, February 12, 2009
पासवर्ड के सितम
आप क्या पसंद करेंगे ?
१ खुश होना
२ संतुष्ट होना
३ ऐसे ही रहना
४ ऊपर में कोई नही
हुआ यूँ की मैंने अपने सभी ईमेल अकाउंट के पासवर्ड बदल दिए , एक साथ । नतीजा तुंरत ही निकल आया । तीन घंटे बाद जब मैंने लोग इन की कोशिश की तो पता लगा कि मैं बहुत ही चतुराई से बनाये गए पासवर्ड भूल गया हूँ। मेरे दिल पर क्या बीती ये तो अलग ही बात है।भाईसाहब दिमाग लगा लगा के भी वो चतुराई से बनाये पासवर्ड न याद आए। एक दोस्त को फोन किया , बड़े ही इत्मिनान से बात सुनी और फ़िर बात ख़त्म होते ही उसने हँसी का अपना व्यक्तिगत सूखा ख़त्म कर डाला । बड़ी ही खीज हुई । ये अकाउंट ज़रूरी था ।
गूगल हेल्प ने भी इतने डिटेल मांगे कि जो आते थे वो भी हम सरलता से भूल गए। दो तीन बार कोशिश कि हेल्प फॉर्म भरने कि पर फ़िर छोड़ दिया। । फ़िर आचानक प्रकाश फ़ैल गया , दिव्या ज्योति नभ में जगमगाने लगी । मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ -कि क्यों मैं एक ईमेल के पीछे इतना चिंतित हो रहा हूँ । मुझे मेरा उत्तर मिल चुका था। मैं संतुष्ट था।
दो तीन दिन बाद -----
आराम से बैठा था देखा कि दीवाल पर किसी ने कुछ गोंजा गांजी कर रखी है । ध्यान से गौर फ़रमाया तो पता लगा कि कुछ लिखा है । गन्दा लग रहा था क्योंकि पेंसिल से लिखा था इसलिए मैंने एक कपड़ा लिया और तुंरत ही लेटे लेटे ही पैर से साफ़ कर डाला ।
दो मिनट बाद ---------
ग्लानि की बिजलियाँ और भी जोरों से कड़क रही है । अफ़सोस की बारिश में संतुष्टि बह चुकी थी ।मैं अपना पासवर्ड कपडे से मिटा चुका था।
अब लगता था कि अन्दर एक बोझ सा है
या था।
कुछ दिन रहा । आज अभी अनायास ही जाने कहा से पासवर्ड याद आ गया । लगा हज़ार की नोट मिल गई हो ।
भावना- इसे सिर्फ़ , खुशी में आप नही समझ सकते..... ये तो पंचमेल है। खिचडी ।
मेरा सही जवाब -
५ ऊपर के चारों
१ खुश होना
२ संतुष्ट होना
३ ऐसे ही रहना
४ ऊपर में कोई नही
हुआ यूँ की मैंने अपने सभी ईमेल अकाउंट के पासवर्ड बदल दिए , एक साथ । नतीजा तुंरत ही निकल आया । तीन घंटे बाद जब मैंने लोग इन की कोशिश की तो पता लगा कि मैं बहुत ही चतुराई से बनाये गए पासवर्ड भूल गया हूँ। मेरे दिल पर क्या बीती ये तो अलग ही बात है।भाईसाहब दिमाग लगा लगा के भी वो चतुराई से बनाये पासवर्ड न याद आए। एक दोस्त को फोन किया , बड़े ही इत्मिनान से बात सुनी और फ़िर बात ख़त्म होते ही उसने हँसी का अपना व्यक्तिगत सूखा ख़त्म कर डाला । बड़ी ही खीज हुई । ये अकाउंट ज़रूरी था ।
गूगल हेल्प ने भी इतने डिटेल मांगे कि जो आते थे वो भी हम सरलता से भूल गए। दो तीन बार कोशिश कि हेल्प फॉर्म भरने कि पर फ़िर छोड़ दिया। । फ़िर आचानक प्रकाश फ़ैल गया , दिव्या ज्योति नभ में जगमगाने लगी । मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ -कि क्यों मैं एक ईमेल के पीछे इतना चिंतित हो रहा हूँ । मुझे मेरा उत्तर मिल चुका था। मैं संतुष्ट था।
दो तीन दिन बाद -----
आराम से बैठा था देखा कि दीवाल पर किसी ने कुछ गोंजा गांजी कर रखी है । ध्यान से गौर फ़रमाया तो पता लगा कि कुछ लिखा है । गन्दा लग रहा था क्योंकि पेंसिल से लिखा था इसलिए मैंने एक कपड़ा लिया और तुंरत ही लेटे लेटे ही पैर से साफ़ कर डाला ।
दो मिनट बाद ---------
ग्लानि की बिजलियाँ और भी जोरों से कड़क रही है । अफ़सोस की बारिश में संतुष्टि बह चुकी थी ।मैं अपना पासवर्ड कपडे से मिटा चुका था।
अब लगता था कि अन्दर एक बोझ सा है
या था।
कुछ दिन रहा । आज अभी अनायास ही जाने कहा से पासवर्ड याद आ गया । लगा हज़ार की नोट मिल गई हो ।
भावना- इसे सिर्फ़ , खुशी में आप नही समझ सकते..... ये तो पंचमेल है। खिचडी ।
मेरा सही जवाब -
५ ऊपर के चारों
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